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Blog / 04 Nov 2019

(आर्थिक मुद्दे) भारतीय रेलवे और निजीकरण (Privatization of Indian Railway)

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(आर्थिक मुद्दे) भारतीय रेलवे और निजीकरण (Privatization of Indian Railway)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रेमपाल शर्मा (पूर्व कार्यकारी निदेशक, रेलवे बोर्ड), यतीश राजावत (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को हाल में एक पत्र लिखा है। इस पत्र में 150 गाड़ियों और 50 रेलवे स्टेशनों का निजीकरण करने का उल्लेख किया गया है। इस काम को अंजाम देने के लिए रेल मंत्रालय ने नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत की अध्यक्षता में एक अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया है।

आखिर क्यों हो रहा है रेलवे का निजीकरण?

तमाम प्रयासों के बावजूद पिछले कई सालों से रेलवे लगातार घाटे का सबब बना हुआ है। समय की बदलते जरूरतों के साथ भारतीय रेलवे आज भी बुनियादी ढांचों और आधुनिकीकरण के मामले में काफी पीछे चल रहा है। रेलवे के सभी अंग - चाहे वह यात्रियों की सुरक्षा हो या यात्रा से जुड़ी अन्य सेवाएं हों - आधुनिक मशीनों, प्रक्रियाओं और प्रशिक्षण आदि की कमी से जूझ रहे हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि रेलवे बेहतर सेवा उपलब्ध कराने में सक्षम साबित नहीं हो रहा है। और यह दिक्कत एक लंबे समय से चल रही है, जिसके कारण रेलवे को सरकारी खजाने पर भार के रूप में देखा जाने लगा है। साथ ही,यात्री भाड़ा को कम रखने की कोशिश में माल भाड़े को काफी बढ़ा दिया जाता है। इस तरह की और भी तमाम दिक्कतें हैं, जिनका उपाय निजीकरण में खोजा जा रहा है।

क्या कहती है विवेक देबरॉय समिति?

सितंबर 2014 में नीति आयोग के सदस्य और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। समिति का काम भारतीय रेल के निजीकरण की राह सुझाना था। इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि भारतीय रेल को मुनाफ़े में लाने के लिए निजी क्षेत्र को सवारी और माल गाड़ियों को चलाने की मंजूरी देनी चाहिए। आधारभूत सेवाएं, उत्पादन और निर्माण जैसे काम रेलवे के लिए मूल काम नहीं हैं, इनमें निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाए। इसके अलावा समिति ने सुझाया था कि राजधानी/शताब्दी गाड़ियों को चलाने का व्यवसायिक काम निजी क्षेत्र को देना जाए और इसके बदले उनसे कुछ सालाना फीस लिया जाये।

क्या तर्क दिया जा रहा है निजीकरण के पक्ष में?

बेहतर बुनियादी सुविधाएँ: निजीकरण के पक्ष में एक बढ़ा तर्क यह यह दिया जा रहा है कि इससे बुनियादी ढांचे बेहतर होंगे। जिसके कारण यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा। उम्मीद है कि खराब प्रबंधन, गंदे वॉशरूम, पानी की आपूर्ति में कमी और गंदे प्लेटफार्मों जैसी दिक्कतों से निजी कंपनियां अच्छी तरह से निजात दिलाने में सक्षम साबित होंगी। साथ ही, इन दिक्कतों से निपटने के लिए प्राइवेट कंपनियां रेलवे में वैश्विक स्तर की तकनीक का इस्तेमाल करेंगी।

  • सुविधाओं के अनुरूप किराया: रेलवे पर अक्सर यह आरोप लगता रहता है कि किराया तो बढ़ जाता है लेकिन इसके मुताबिक सुविधाओं में बढ़ोतरी नहीं की जाती, लेकिन निजी कंपनियों के आने के बाद इस तरह की शिकायतों में कमी आ सकती है क्योंकि अगर निजी कंपनियां सेवाएं देंगी तो ही उसके बदले में चार्ज ले सकेंगी।
  • दुर्घटनाओं में आएगी कमी: निजीकरण के कारण कंपनियां रख-रखाव में ज्यादा से ज्यादा निवेश करेंगी। नतीजतन, रेलवे की दुर्घटनाओं में कमी की उम्मीद है।
  • लागत में भी आएगी कमी: चूँकि निजी कंपनियों का ज्यादातर उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना होता है। ऐसे में, वे कम से कम निवेश करके अधिक से अधिक लाभ पर फोकस करेंगी। जिसके कारण रेलवे की लागत में कमी आने की उम्मीद है।
  • प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा जिसके कारण यात्रियों और माल ढुलाई करवाने वालों को इसका लाभ पहुंचेगा।

निजीकरण के विरोध में क्या तर्क दिया जा रहा है?

कंपनियों के मुनाफे वाले क्षेत्रों में ही निवेश करेंगी।ऐसे में, जो कम मुनाफे वाले रूट होंगे,उन पर ये प्राइवेट कंपनियां सेवाएं देने में हिचकिचाएंगी। जिसके कारण इस रूट वाले क्षेत्र रेल यातायात की सुविधा से वंचित हो सकते हैं।

  • ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में किराए में बढ़ोत्तरी हो सकता है। जो गरीबों के लिए रेल यात्रा को महंगा बना सकता है।
  • प्राइवेट कंपनियां अपने प्रशासनिक संरचना और कार्यप्रणाली को अपने तरीके से चलाएंगी, जिसके कारण इन कंपनियों की जवाबदेही तय करने में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं।
  • ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि निजीकरण के कारण रेलवे और इससे जुड़े रोजगारों में काम कर रहे लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं।
  • रेलवे भारत की जीवन रेखा कही जाती है, ऐसे में इसमें निजी क्षेत्र का दबदबा बढ़ना विशेषज्ञों की राय में बहुत सही नहीं बताया जा रहा है।
  • ज्यादातर निजी कंपनियां शॉर्ट टर्म लाभ कमाने की जुगत में लग जाएंगी, जिसके कारण दीर्घ अवधि वाले निवेश की अनदेखी हो सकती है।

निजीकरण की राह में क्या चुनौतियां हैं?

रेलवे के निजीकरण में दो बिंदु सबसे महत्वपूर्ण हैं - पहला यह कि रेलवे में निजी पूंजी निवेश को बढ़ावा दिया जाए और दूसरा रेलवे के प्रचालन और सेवाओं से संबंधित कुछ ही हिस्सों का निजीकरण किया जाए।इन दोनों पहलुओं पर किसी भी प्रकार के निर्णय से पहले सरकार के लिए मजदूर संघों और तमाम राजनीतिक पार्टियों को अपने विश्वास में लेना एक चुनौती होगा।रेलवे में इस निजीकरण को मॉनिटर कैसे किया जाए, ताकि जनहित प्रभावित ना हो यह भी एक अहम मुद्दा होगा।